प्रेम में आपका अपना कुछ नहीं होता. सबकुछ दूसरे को समर्पित होता है. प्रेम पर संत कबीर ने अपने एक दोहे में कहा था कि प्रेम गलि अति सांकरी जा में दो ना समाएं. यानी प्रेम की गली इतनी संकरी होती है कि उसमें दो के लिए कोई जगह नहीं होती और किसी एक को तो मिटना ही पड़ता है. https://ift.tt/XonDdbU